मैंने कुछ यूं जिंदगी को करीब से देखा है
हर पल ज़माने का रंग बदलते देखा है कि–
मैंने अपने बाबा के सफर को स्याही में पिरोया है
वो जो चलते थे तो शेर के चलने का गुमान होता था
उनको पैर उठाने के लिए सहारे को तरसते देखा है ।
जिनकी हाथों के ज़रा सा इशारे से टूट जाते थे पत्थर
उन्हीं हाथों को आज थरथराते देखा है ।
जिनकी अवाज से बिजली कङकने का गुमान होता था
उन्हीं होंठों पे अब लंबी खामोशी ओढे देखा है ।
जिनकी आंखों की चमक देख लोग जल जाया करते थे
उन्हीं आँखो को बरसात की तरह मैंने रोते देखा है।
धन, दौलत, ताकत और किस्मत उस ईशवर की इनायत है
इन सब के होते हुए भी इनसान को मैंने लाचार देखा है
बाबा की सीख मेरे सामने आज खङी है
बाबा कहतें थे गुमान कभी ना करना वक्त पे
क्योकि
वक्त की धारा ने अपने आगे सबको झुकाया है
बाबा , वक्त और किस्मत तो बदल नहीं सकती
पर इतना कहती हुँ कि तेरी ये बिटिया भी
अब तेरा मजबूत सहारा है ।।
~~अमिता सिंह~~
(ओडिशा बाइकरनी)
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