मेरी मूक शब्दों को,
मेरी आँखों में झांक कर देख लो ना तुम।
हर सुबह जल्दी रहती है तुम्हे,
कभी मेरी नज़रो में इंतजार देख लो ना तुम।
माना पैसे तुम्हीं लाते हो घर पर,
हम सब केलिए,
मैं खुद को कैसे खर्च कर रही हुँ,
तुम सब के लिए।
कभी ठहर कर एक पल,
हिसाब कर लो ना तुम ।
मै भी आखिर इनसान हु,
यह मत भुल जाओ तुम।
किसी छुट्टी के दिन मैं भी,
छुट्टी कर सकूं अपनी,
तुम सबके साथ बैठ सकूं,
कुछ अपनी कह सकूं,
जरा सबकी सुन सकूं•••
कभी ऐसे पल भी,
मेरे हिस्से में दे दो ना तुम।
कभी यूँ भी मेरी हाथ थामे,
मुझे निहारो जरा तुम।
कह दो कि चलो आज
दूर कहीं चलते हैं
जींदगी की भागदौड़ से
ईक पल हम दोनों आज चुराते हैं।
सब छोड बस लम्बी बातें करतें हैं•••
कभी ये मेरे ख़वाइश,
पल भर के लिए ही सही,
सच कर दो ना तुम आखिर,
मैं तुम्हारे अपनी हु पराई नहीं। ।
~ अमिता सिंह, ~~
ओडिशा बाइकरनी
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