बचपन ही बहुत रईस था
बाबा का कंधा सिंहासन था
वहां से दुनिया छोटी दिखती थी
आज दफतर की उंचाई से
अनंत सी लगती है।
माँ का गोद मखमली श्या थी
एक ही बिस्तर में भाई-बहन संग
गहरी नींद आ जाती थी
आज महंगी नर्म गद्दे पर चिंता
नींद पर हावी है।
स्त्री किए कपड़े और रुमाल
मौजे जुते सब जमा के मिलती थी
छोटे से टिफिन मे
फल ,मीठा ,खाना चॉकलेट,
छप्पन भोग से लगते थे
सखा संग बांट के
सब कुछ शान से खाते थे
आज स्वास्थ्यप्रद भोजन
नाप तोल के खाते है ।
स्कूल जाते वक्त
माँ का दस रुपए देना
कि टिफिन गिर जाए तो
कैन्टीन से खा लेना
किसी ख़ज़ाने सा लगता था
उस दस रुपये से भी
पॉकेट मे वज़न था
आज लाख रुपये भी
हल्के लगते हैं।
माँ बाबा के संरक्षण मे
कितने रईस थे हम
वो बचपन के दिन
बहुत याद आतें हैं।
मरने से पहले ऐ जिंदगी
दरख्वास्त है तुझसे
बचपन का ज़रा वो
छोटा सा पल मुझ को
फिर दे देना।
~अमिता सिंह~
ओडिशा बाइकरनी,
भुवनेश्वर
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