हाँ वो डर
तेरे मेरे भीतर का वो डर
जाने क्या होगा
कौन क्या कहेगा
जितेगा या हारेगा
क्या कोई सोचेगा ।।
कितनी आशाएँ
कितनी अभिलाषाएं
छुटी टुटी
क़िस्मत कहा जा के फूटी
कौन सी है ये गुत्थी
जीत भी हमसे रूठी ।।
हाँ वो डर
तेरे मेरे भीतर का वो डर
जाने क्या होगा
कौन क्या कहेगा
जितेगा या हारेगा
क्या कोई सोचेगा ।।
समाज से झुंजता
परिवारों से रूठता
रस्मों से झुलझता
मर्यादाओ को तोड़ता ।।
हाँ वो डर
तेरे मेरे भीतर का वो डर
जाने क्या होगा
कौन क्या कहेगा
जितेगा या हारेगा
क्या कोई सोचेगा ।।
पहले कदम का साहस
गलती होने का एहसास
बन जाए ना कोई रास
जीने से परे हो जाए मरने की आस
जैसे डूब रहा हो नया प्रयास ।।
हाँ वो डर
तेरे मेरे भीतर का वो डर
जाने क्या होगा
कौन क्या कहेगा
जितेगा या हारेगा
क्या कोई सोचेगा ।।
~डः निधि गर्ग ~
0
One Response to Hindi short poem: DARR… (डर) ~Dr. Nidhi Garg (डः निधि गर्ग)