युॅ तो पूजते हो तुम दुर्गा ,सरस्वती ,अंबा को
उन्हें तुमने देखा तो नहीं है।
वो मूरत तो तुमने बनाई है ।
बेजान है जो उसके सामने,
तुमने सर अपना झुकाया है ।
मैं तो सजीव हुँ ,प्राण है मुझमें
मेरी पुजा अर्चना ना करो ।
बस थोड़ा सा मान सम्मान दे दो ।
खुल के हम अपनी ज़ींदगी जी सके ।
निडर होकर हम अपनी अस्तीत्व को सँवार सके,
अपनी पहचान बना सके ।
अपने जन्मदाता के माथे की शिकन नहीं शुक़ुन बन सके ।
जहाँ डर ना हो मेरी आबरू लुटने का ।
इज्जत से भरी वो नज़रो दे दो ।
मुझे एक ऐसा स्वतंत्र माहौल दे दो ।
मुझे खुल कर जीने का हक दे दो ।।
~अमिता सिंह~~
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