राखी की एक डोर ~ अमिता सिंह ~

Short poem in Hindi " Rakhi ki ek dor " by Amita Singh

मइया नही बाबा नही बस एक है भइया।
धुंधला गई आंगन मे मेरी पायल की रूणझुन
और धुंधला गई बाबा की लोरियाँ ।

यादें रह गई है अब, मेरा रूठ जाना और मां बाबा का मनाना।
तीज त्यौहार फिंके पङे अब ,फींकी पङी मईया की घर बुलाने की मनुहार ।
फींकी पङ गई वो छुट्टियों में मां का मेरे आने का इंतजार ।

मिट गई मेरी राज़सी ठाठ ,मां के हाथों के वो पकवान
मुँह मोङ गया वक्त ,पीछे छुटा सब

मइया नही बाबा नही बस एक है भइया
राखी की एक डोर से बंधे है अब मै मेरी मइया।।

 

~अमिता सिंह~

 

 

 

 

 



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