मैं नारी हूँ ,मै मृत्यु पर भी भारी हुँ (सावित्री)।
कभी सहनशक्ति (सीता)
कभी स्वाभिमानी (द्रौपदी)
कभी सवॆ शक्तिशाली हुँ (दुर्गा)।
मैं दुर्गा ,सरस्वती और काली हुँ ।
मगर इंसानों की ईस भूमि पर,
हैवानियत में मैं कहीं जल रही हुँ ,
तो कहीं हो रही बेआबरू हुँ ।
मै खामोश हुँ, संस्कार और सम्मान पर गई वारी हुँ ।
ये इंसान तेरी क्रूरता और हिंसा से हारी हुँ ।।
~अमिता सिंह~
ओडिशा बाईकरनी
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